माटी तिहार – बीज पुटनी – बीज पंडुम ....

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माटी तिहार – बीज पुटनी – बीज पंडुम - माटी देव की सेवा अर्जी 

बस्तर संभाग आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है, जहाँ की जनजातीय विशेषता ही नहीं वरन यहाँ की जनजातीय संस्कृति पुरे विश्व में प्रसिद्ध है | यहाँ पर प्रमुख रूप से माड़िया,गोंड़ ,मुरिया, धुरवा, हल्बा , भतरा आदि जनजाति निवास करती हैं जो कि प्रकृति प्रेमी होते हैं, माटी ही उनके लिए सब कुछ होता है | यहाँ की हरियाली और पेड़-पौधे इसलिए हरे-भरे हैं क्योंकि यहाँ के लोग प्रकृति की पूजा करते हैं। जिस प्रकार से इन जनजातीय वर्गों में विभिन्नता भरी हुयी है वैसे ही इनकी संस्कृति भी अनेक रंगों से रंगा हुआ है |

बस्तर के आदिवासी समुदाय का जीवन प्रकृति से प्रारंभ होकर प्रकृति में विलीन होने तक का सफ़र होता है | ये प्रकृति के उपासक होते हैं | इनका अस्तित्व जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत माटी से ही जुड़ा होता है। माटी जन्म देने वाली मां से भी ज्यादा पूजनीय है | माटी के बिना वे वह स्वयं की कल्पना भी नहीं करते, जैसे वे किसी भी चीज़ का कसम खाते हैं तो उनके लिए दुनिया से बड़ी और कोई कसम नहीं होती, उसे पूरा करके ही दम लेते हैं और वह होती है – “माटी किरिया” |

हमारे यहाँ के आदिवासी भाई-बहन का मुख्य व्यवसाय कृषि है और वनोपज पर जीवन-यापन हेतु निर्भर रहते हैं | प्रकृति या यूँ कहें कि माटी से इनका लगाव नैसर्गिक है | आदिवासी समुदाय के विभिन्न कला एवं संस्कृति के तारतम्य में समुदाय का एक मुख्य तिहार है – माटी तिहार, जिसे बीज पुटनी और गोंडी में बीज पंडुम कहते हैं |

👉 धान चिपटी
आदिवासी समुदाय माटी तिहार या बीज पूटनी, बीज पंडुम का तिहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हें। तिहार के दिन प्रत्येक घर के सदस्य घर से सिंयाड़ी वृक्ष के पत्ते में धान की चिपटी ( पोटली ) बना कर रखते हैं जिसे बांस के डंडे से बाँध दिया जाता है एवं गाँव में निर्धारित स्थल जिसे बीज कोठार कहा जाता है जहाँ पर माटी देव एवं गाँव की देवी-देवताओं की पूजा, सेवा अर्जी होती है वहां धान की चिपटी के साथ एकत्र होते हैं | समस्त ग्रामीण अपने साथ में माटी देव को अर्पित करने महुआ की शराब, मुर्गा, अंडा, चावल इत्यादि साथ ले जाते हैं साथ ही खाना बनाने के पात्र भी लेकर आते हैं |


( फोटो :- मित्र ओम सोनी जी के फेसबुक वाल से )

👉 बीज कोठार
बीज कोठार में ग्रामीण एक स्थान पर सारे चिपटीयों को जमा करते हैं, फिर गाँव के गायता, पेरमा, पुजारी एवं वरिष्टजन के द्वारा माटी देव, ग्राम देव एवं ईष्ट देवों का सुमरन किया जाता है माटी देव को महुआ की शराब, मुर्गा, अंडा इत्यादि अर्पित किया जाता है | बीज कोठार में दो प्रकार की खेत तैयार किया जाता है एक में धान बोया जाता है और एक में कीचड़ तैयार किया जाता है | सेवा अर्जी के बाद गाँव के पुजारी के द्वारा धान बोने हेतु तैयार खेत में नांगर (हल) चला कर धान का बीज बोया जाकर पानी दिया जाता है | सेवा अर्जी के बाद समस्त ग्रामीणों के द्वारा माटी देव को अर्पित जीवों को पकाकर तैयार किया जाता है एवं भोजन बनने के उपरांत मदपान कर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है |

👉 मिट्टी का लेप
भोजन के बाद बीज कोठार के जिस जगह पर समस्त धान चिपटी रखा जाता है जिसके सामने कीचड़ से भरा तैयार खेत होता है में बारी-बारी से गाँव के पूजारी के द्वारा धान की चिपटीयों को उठाया जाता है | ग्रामीण के द्वारा अपनी अपनी चिपटी पहचान कर कीचड़मय खेत से होकर गुजरते हैं जिसमें युवक उसे अश्लील शब्दों का प्रयोग करते हुए उसके पुरे शरीर में मिट्टी/कीचड़ का लेप लगाते हैं फिर वे स्वयं भी अश्लील शब्दों का प्रयोग करते अपने-अपने घर को चले जाते हैं | इस प्रकार से प्रकृति प्रेमी अपने माटी देव का स्मरण कर अच्छी फसल होने की कामना करते हैं और हर्षौल्लास पूर्वक माटी तिहार का आनंद लेते हैं | घर पहुँच कर घर के वृद्ध महिला अथवा पुरुष के द्वारा पानी अथवा कसा पानी (महुए की छाल से निर्मित जल ) छिड़क कर धान की चिपटी को धान की खोली में रख दिया जाता है जिसे धान की बोहाई तक इन पोटलियों को सुरक्षित रखा जाता है।

                                           ( फोटो :- मित्र ओम सोनी जी के फेसबुक वाल से )

👉 बासी तिहार
बस्तर के आदिवासी समुदाय के परम्पराओं में बासी दिन का बड़ा महत्त्व होता है | बासी दिन तिहार दिवस के अगले दिन को कहा जाता है | माटी तिहार के दुसरे दिन गाँव-गाँव सीमा में रोड़ा/नाका बनाकर प्रत्येक आने जाने वालों राहगीरों से पैसे, अनाज, सब्जी अथवा जो वो स्वेच्छा से दे सकें एकत्र करते हैं। इस बीच अश्लील शब्दों का उपयोग युवकों के द्वारा लगातार किया जाता है जो कि इस तिहार की अनोखी परंपरा है | इस एकत्र किये हुए पैसे तथा अनाज को सामूहिक रूप से भोज का आयोजन कर ग्रहण किया जाता है |

👉 तिहार का समापन
माटी का तिहार यहीं समाप्त नहीं हो जाता, यह उस दिन तक रहता है जब खेती करने का समय प्रारंभ होता है यानि धान की बोहाई करने का समय आता है | धान के बोहाई से दस-बारह दिन पहले ग्रामीण अपने-अपने खेत में भोर से पूर्व पहुँच कर माटी देव एवं समस्त इष्ट देवों की सेवा अर्जी किया जाता है, उन्हें महुआ की शराब, अंडा, मुर्गा, चूड़ी-पुन्दनी, अंडे के छिलके इत्यादि अर्पित किया जाता है फिर खेत के छोटे से हिस्से में धान की चिपटी को खोलकर धान की बोहाई करते हैं, ऊपर से मिट्टी डाल कर पानी डाल दिया जाता है और अच्छी फसल होने की कामना कर माटी देव से आशीर्वाद लिया जाता है | इस तिहार की एक अनोखी बात यह भी है कि तिहार में महिलाओं की सहभागिता नहीं होती | माटी देव की सेवा अर्जी से घर पहुँचने तक महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता है |


आलेख - महेंद्र कश्यप 
दिनांक - 06-03-2023

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2Comments
  1. बहुत बढ़िया आलेख है, किंतु माटी तिहार/बीज पंडुम के संदर्भ में यदि अश्लील शब्द का इशारा"लोट-लोट" आह्वान की ओर है, तो गलत है...... हाँ लोट लोट का अर्थ संसर्ग ही है, बीजों का संसर्ग/बीज पुटनी से ही, जो आगे मनुष्य में प्रकृतिचक्र और जीवन के विकास, गेरुब ज्ञान अंतरण को उदधृत करता है । अतः यहाँ पंडुम के अर्थों में लोटना में अश्लील भावार्थ नहीं है । बस यहाँ हिंदी या अन्य भाषाओं की तरह पर्यायवाची का अभाव है ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपके अनमोल विचारों के लिए ......;मैं भी स्वयं इन शब्दों के पर्यायवाची शब्दों के खोज में हूँ जो सांस्कृतिक रूप से इन शब्दों को चरितार्थ कर सके | आलेखों में सुधार हेतु सुझाव जरुर दीजियेगा |

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