डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर जी की 132 वीं जयंती पर संक्षिप्त आलेख .....................
भारतीय अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक रहे भीमराव रामजी अम्बेडकर लोगों के बीच में बाबा साहेब अम्बेडकर नाम से लोकप्रिय थे। वे भारतीय इतिहास के ऐसे महान व्यक्ति हैं जिन्होंने दलितों को सामाजिक अधिकार दिलाने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। 14 अप्रैल 1891 को डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म महू में सूबेदार रामजी शकपाल एवं भीमाबाई की चौदहवीं संतान के रूप में हुआ था।
सयाजीराव गायकवाड़ (बड़ौदा के महाराजा) ने डॉ. अम्बेडकर को मेधावी छात्र के नाते छात्रवृत्ति देकर विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेजा, जहां उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, दर्शन और अर्थ नीति का गहन अध्ययन प्राप्त किया था, जहां उन्हें अमेरिका में एक नई दुनिया के दर्शन हुए। वे एक महानायक, विद्वान, दार्शनिक, वैज्ञानिक, समाजसेवी एवं धैर्यवान व्यक्तित्व के धनी थे। उनके व्यक्तित्व में स्मरण शक्ति की प्रखरता, बुद्धिमत्ता, ईमानदारी, सच्चाई, नियमितता, दृढ़ता, संग्रामी स्वभाव ये सभी गुण उनकी अद्वितीय प्रतिभा को खास बनाते हैं।
डॉ. अम्बेडकर ने अपना समस्त जीवन समग्र भारत की कल्याण कामना में लगा दिया, खास तौर पर भारत के 80 फीसदी दलित सामाजिक एवं आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें इस अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही अम्बेडकर का जीवन संकल्प था। डॉ. अम्बेडकर के अनुसार, हिन्दुत्व की गौरव वृद्धि में वशिष्ठ जैसे ब्राह्मण, राम जैसे क्षत्रिय, हर्ष की तरह वैश्य और तुकाराम जैसे शूद्र लोगों ने अपनी साधना का प्रतिफल जोड़ा है। उनका हिन्दुत्व दीवारों में घिरा हुआ नहीं है, बल्कि ग्रहिष्णु, सहिष्णु व चलिष्णु है।
डॉ. अम्बेडकर ने समाज को श्रेणीविहीन और वर्णविहीन करने के लिए बहुत कोशिश की, क्योंकि इसी श्रेणी ने इंसान को दरिद्र और वर्ण ने इंसान को दलित बना दिया था, जिनके पास कुछ भी नहीं है, वे लोग दरिद्र माने गए और जो लोग कुछ भी नहीं है वे दलित समझे जाते थे। डॉ. अम्बेडकर का संकल्प था कि वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहीन करना होगा तथा समाजवाद के बिना दलित और मेहनती इंसानों की आर्थिक मुक्ति संभव नहीं। अत: उन्होंने संघर्ष का बिगुल बजाया और आह्वान किया कि, छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, अधिकार वसूल करना होता है।
भारतीय संविधान की रचना हेतु डॉ. अम्बेडकर के अलावा और कोई अन्य विशेषज्ञ भारत में नहीं था। अतः सर्वसम्मति से डॉ. अम्बेडकर को संविधान सभा की प्रारूपण समिति का अध्यक्ष चुनकर 26 नवंबर 1949 को डॉ. अम्बेडकर द्वारा रचित (315 अनुच्छेद का) संविधान पारित किया गया।
डॉ. अम्बेडकर की मृत्यु 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली स्थित उनके आवास में नींद के दौरान हो गई। वे मधुमेह से पीड़ित थे। मरणोपरांत सन् 1990 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
भारतीय संविधान के निर्माण में बाबा साहेब का योगदान -
कैबिनेट मिशन का गठन :-
समय था द्वितीय विश्वयुद्ध का जो की समाप्ति की और अग्रसर था लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह था कि अंग्रेजों के भारत छोड़ कर जाने के बाद देश की बागडोर किसके हाथ म,एन सौंपी जाएगी? कांग्रेस कैबिनेट के वो कौन-कौन से नेता होंगे, जिन्हें अंग्रेज देश चलाने की जिम्मेदारी देंगे? इन्ही सवालों के जवाब के लिए 23 मार्च 1946 को कांग्रेस कैबिनेट का एक दल दिल्ली पहुंचा.
कैबिनेट मिशन की मुख्य बातें :-
1. ब्रिटिश प्रान्तों और देशी राज्यों को मिलाकर एक भारतीय संघ का निर्माण किया जायेगा. भारतीय संघ के अधीन परराष्ट्र नीति, प्रतिरक्षा और संचार व्यवस्था रहेगी, जिसके लिए आवश्यक धन भी संघ को ही जुटाना होगा.
2. संघ की एक कार्पालिका और विधानमंडल होगा जिसमें ब्रिटिश प्रान्तों और देशी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे. अन्य सभी विषय सरकार के अधीन होंगे.
3. प्रान्तों को यह अधिकार दिया गया कि वे अलग शासन सबंधी समूह बनाएँ. भारत के विभिन्न प्रान्तों को तीन समूहों में बाँटा गया – a) मद्रास, बम्बई, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, बिहार और उड़ीसा b) उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत, पंजाब और सिंध c) बंगाल और असम. प्रत्येक समूह को अधिकार दिया गया कि वह अपने विषय के सम्बन्ध में निर्णय लें और शेष विषय प्रांतीय मंत्रमंडल को सौंप दें.
4. देशी राज्यों के द्वारा जो विषय संघ को नहीं सौंपे जायेंगे उनपर देशी राज्यों का ही अधिकार होगा.
5. संविधान के निर्माण के बाद ब्रिटिश सरकार देशी राज्यों को सार्वभौम संप्रभुता का अधिकार हस्तांतरित कर देगी. भारतीय संघ में सम्मिलित होने अथवा उससे अलग रहने का निर्णय देशी राज्य स्वयं करेंगे.
6. योजना के कार्यान्वित होने के दस वर्ष पश्चात् या प्रत्येक दस वर्ष पर प्रांतीय विधानमंडल बहुमत द्वारा संविधान की धाराओं पर पुनर्विचार कर सकता है.
कैबिनेट मिशन में संविधान के निर्माण से सम्बंधित बातें निहित :-
1. प्रति दस लाख की जनसँख्या पर एक सदस्य का निर्वाचन होगा.
2. प्रान्तों के संविधानसभा में प्रतिनिधित्व आबादी के आधार पर दिया जायेगा.
3. अल्पसंख्यक वर्गों को आबादी से अधिक स्थान देने की प्रथा समाप्त हो जाएगी.
4. रियासतों को भी जनसंख्या के आधार पर ही प्रतिनिधित्व दिया जायेगा.
5. संविधानसभा की बैठक दिल्ली में होगी और प्रारम्भिक बैठक में अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारियों का चुनाव कर लिया जायेगा.
6. प्रान्तों के लिए अलग संविधान की व्यवस्था भी योजना के अंतर्गत थी. प्रत्येक समूह अपने संविधान के सम्बन्ध में तथा संघ में रहने का निर्णय करेगा.
7. केंद्र में एक अस्थायी सरकार की स्थापना होगी और उसमें भारत के सभी प्रमुख दलों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जायेगा. केन्द्रीय शासन के सभी विभाग इन प्रतिनिधियों के अधीन रहेंगे तथा वायसराय इनकी अध्यक्षता करेगा.
8. इंगलैंड भारत को सत्ता सौंप देगा. इस सिलसिले में जो मामले उत्पन्न हों उन्हें तय करने के लिए भारत और इंगलैंड के बीच एक संधि होगी.
अंततः 14 जून, 1946 को कांग्रेस और मुस्लीम लीग दोनों ने इस योजना को स्वीकृत दे दी. हिन्दू महासभा तथा साम्यवादी दल ने इसकी कटु आलोचना की. अंतरिम सरकार की स्थापना के प्रश्न पर कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में मतभेद हो गया. मुस्लिम लीग ने दावा किया कि वह कांग्रेस के बिना ही अंतरिम सरकार का निर्माण कर लेगी लेकिन वायसराय ने लीग के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
1946 के चुनाव में निर्वाचन के लिए निर्धारित कुल 102 स्थानों में कांग्रेस को 59 स्थान प्राप्त हुए थे और मुस्लिम लीग को मात्र 30 स्थान प्राप्त हुए. मुस्लिम लीग को इस चुनाव परिणाम से घोर निराशा हुई. 8 अगस्त, 1946 को कांग्रेस की कार्य समिति ने प्रस्ताव पारित कर अंतरिम सरकार बनाने की योजना स्वीकार कर ली. अंतरिम सरकार ने 2 सितम्बर, 1946 को अपना कार्यभार संभाल लिया और पंडित नेहरु इसके प्रधानमंत्री बने. आगे चलकर वायसराय की सलाह पर मुस्लिम लीग ने अक्टूबर 1946 को सरकार में शामिल होना स्वीकार कर लिया, लेकिन सरकार को सहयोग देने के बदले यह हमेशा उसके कार्य में अड़ंगा डालती रही. कैबिनेट मिशन ने भारत के विभाजन का मार्ग तैयार कर दिया था.
अंतरिम सरकार का गठन :-
कैबिनेट के इस दल में तीन लोग शामिल थे. पैट्रिक लॉरेंस, सर स्टेफोर्ड क्रिप्स और ए .बी. अलेक्जेंडर. इस दल ने सभी पक्षों से मिलकर बात की. 16 मई 1946 को कैबिनेट मिशन इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि भारत की आजादी के बाद अंग्रेज भारत की सत्ता संविधान सभा को सौंप देंगे. इस संविधान सभा में कौन-कौन होगा, इसके लिए चुनाव होगा. ये भी तय हुआ कि संविधान सभा में कुल 389 सदस्य होंगे, जिनमें 292 सदस्य प्रांतों से और 93 सदस्य प्रिंसली स्टेट्स यानी रियासतों से होने थे. 25 जून को कैबिनेट मिशन की इस योजना पर आम सहमति बन गई. 29 जून को दल वापस लौट गया. इसी मिशन की सिफारिशों के तहत अंतरिम सरकार का गठन हुआ, जिसमें 2 सितंबर 1946 को भारत की अंतरिम सरकार बनी और जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने.
संविधान सभा के सदस्य का बने बाबा साहेब :-
इससे पहले कैबिनेट मिशन की सिफारिशों पर संविधान सभा की 385 सीटों के लिए जुलाई-अगस्त 1946 में चुनाव हो गए थे. उस चुनाव में अंबेडकर भी एक उम्मीदवार थे, जो बंबई से शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के उम्मीदवार थे, लेकिन वो चुनाव हार गए. लेकिन महात्मा गांधी से लेकर कांग्रेस और यहां तक कि मुस्लिम लीग के लोग भी चाहते थे कि अंबेडकर को तो संविधान सभा का सदस्य होना ही चाहिए. तब बंगाल से बीआर अंबेडकर को उम्मीदवार बनाया गया. मुस्लिम लीग के वोटों के जरिए अंबेडकर चुनाव जीत गए और संविधान सभा के सदस्य बन गए.
राजेंद्र प्रसाद बने संविधान सभा के अध्यक्ष
मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन के चुनावी प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था किन्तु मुस्लिम लीग ने संविधान सभा में शामिल होने से इनकार कर दिया | 9 दिसंबर, 1946 को जब संविधान सभा की पहली बैठक हुई तो मुस्लिम लीग से कोई भी उस बैठक में शामिल नहीं हुआ और मुस्लिम लीग ने मुस्लिमों के लिए अलग संविधान सभा और अलग देश की मांग कर दी.
लाख मनावन के बाद भी जब मुस्लिम लीग के लोग नहीं माने तो संविधान सभा ने सबसे वरिष्ठ सदस्य डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया गया और 11 दिसंबर को सर्वसम्मति से डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष नियुक्त किए गए. संविधान सभा की बैठक के पांचवे दिन 13 दिसंबर को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा में लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव पेश किया. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पुरुषोत्तम दास टंडन ने इसका अनुमोदन किया.
जब पहली बार संविधान सभा में बोले अंबेडकर
17 दिसंबर, 1946 का वो दिन जिसमें डॉक्टर भीम राव अंबेडकर ने पहली बार संविधान सभा में अपना वक्तव्य पेश किया | संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने अंबेडकर को बोलने के लिए आमंत्रित किया जो कि इतिहास में दर्ज हो गया | डॉक्टर अंबेडकर ने कहा :-
कांग्रेस और मुस्लिम लीग के झगड़े को सुलझाने की एक और कोशिश करनी चाहिए. मामला इतना संगीन है कि इसका फैसला एक या दूसरे दल की प्रतिष्ठा के ख्याल से ही नहीं किया जा सकता. जहां राष्ट्र के भाग्य का फैसला करने का प्रश्न हो, वहां नेताओं, दलों, संप्रदायों की शान का कोई मूल्य नहीं रहना चाहिए. वहां तो राष्ट्र के भाग्य को ही सर्वोपरि रखना चाहिए.
उस दिन डॉक्टर अंबेडकर ने अपने भाषण का समापन करते हुए कहा:
शक्ति देना तो आसान है, पर बुद्धि देना कठिन है.
संविधान सभा का तीसरा सत्र -
लंबे वाद-विवाद के बाद 22 जनवरी, 1947 को संविधान सभा ने लक्ष्य संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, जो संविधान की प्रस्तावना का आधार बना. इस बार भी मुस्लिम लीग का कोई प्रतिनिधि संविधान सभा में नहीं आया तब 13 फरवरी, 1947 को पंडित नेहरू ने मांग की कि अंतरिम सरकार में शामिल मुस्लिम लीग के मंत्री इस्तीफा दे दें. सरदार पटेल ने भी यही दोहराया.
इस बीच 20 फरवरी को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा की कि जून 1948 से पहले सत्ता का हस्तांतरण कर दिया जाएगा. लेकिन इसके लिए एटली ने शर्त रखी. और शर्त ये थी कि जून 1948 से पहले संविधान बन जाना चाहिए. ऐसा नहीं हुआ तो फिर ब्रिटिश हुकूमत को विचार करना होगा कि सत्ता किसे सौंपी जाए. ऐसी परिस्थितियों को देखते हुए 28 अप्रैल, 1947 को संविधान सभा का तीसरा सत्र शुरू हुआ. अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने एटली की घोषणा के बारे में सबको बताया और कहा कि अब संविधान सभा को अपना काम तुरंत पूरा करना होगा.
बाबा साहेब अंबेडकर दोबारा संविधान सभा के सदस्य बने -
इसके ठीक पहले 24 मार्च 1947 को नए गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन भारत आ गए थे और चंद दिनों में ही तय कर दिया था कि भारत का बंटवारा होगा. भारत और पाकिस्तान दो देश होंगे. अब इसकी वजह से संविधान सभा में फिर बदलाव होना था. जिस सीट जयसुरकुलना से अंबेडकर संविधान सभा के सदस्य चुने गए थे, वो सीट पाकिस्तान के हिस्से में चली गई. इस तरह से अंबेडकर एक बार फिर से संविधान सभा से बाहर हो गए. लेकिन तब तक संविधान सभा के लोगों ने ये तय कर लिया था कि अंबेडकर का संविधान सभा में रहना जरूरी है. तब बंबई प्रेसिडेंसी के प्रधानमंत्री हुआ करते थे बीजी खेर. उन्होंने संविधान सभा के एक और सदस्य और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता एम आर जयकर को इस्तीफा देने के लिए राजी किया. एम आर जयकर ने इस्तीफा दिया और उनकी जगह पर अंबेडकर फिर से संविधान सभा में शामिल हो गए. 14 अगस्त, 1947 की रात 12 बजते ही संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कहा-
संविधान सभा ने भारत का शासनाधिकार ग्रहण कर लिया है.
प्रारूप समिति के अध्यक्ष का चुनाव |
आजादी मिलने के बाद और सत्ता का हस्तांतरण संविधान सभा के पास होने के साथ ही संविधान सभा अपने मूल लक्ष्य की ओर आगे बढ़ी. इसी कड़ी में 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने प्रारूप समिति के अध्यक्ष के तौर पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम सर्वसम्मति से पास कर दिया. प्रारूप समिति में और भी 6 सदस्य थे. 30 अगस्त 1947 से संविधान सभा स्थगित कर दी गई ताकि संविधान का मसौदा या कहिए प्रारूप बनाया जा सके. 27 अक्टूबर से प्रारूप समिति ने रोजमर्रा का काम शुरू किया. बात-विचार और बहस-मुबाहिसे के बाद 21 फरवरी 1948 को प्रारूप समिति के अध्यक्ष अंबेडकर ने संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद के सामने संविधान का प्रारूप रखा. राजेंद्र प्रसाद ने इस मसौदे को सरकार के मंत्रालयों, प्रदेश सरकारों, विधानसभाओं और सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को भेजा ताकि सबके सुझावों को शामिल किया जा सके. जो सुझाव आए, उनपर प्रारूप समिति ने 22 मार्च से 24 मार्च 1948 के बीच विचार विमर्श किया.
3 नवंबर, 1948 से फिर से संविधान सभा की बैठक शुरू हुई. 4 नवंबर, 1948 को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने फिर से मसौदे पर बात की और संविधान सभा को कहा कि ये मसौदा उस समिति ने बनाया है, जिसे इसी संविधान सभा ने बनाया था, जिसके अध्यक्ष अंबेडकर हैं. 4 नवंबर को उसी दिन अंबेडकर ने मसौदे को संविधान सभा के पटल पर रखा. आने वाले दिनों में कुछ संशोधन भी सुझाए गए. कुछ माने गए. कुछ को खारिज कर दिया गया. फिर 17 नवंबर, 1949 को संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की:-
अब हम संविधान के तृतीय पठन को आरंभ करेंगे.
इसका अर्थ था कि अब संविधान बनकर तैयार हो गया है. इसके बाद राजेंद्र प्रसाद ने मसौदा समिति के अध्यक्ष अंबेडकर को पुकारा. वो खड़े हुए. और कहा:-
मैं यह प्रस्ताव पेश करता हूं कि संविधान को सभा ने जिस रूप में निश्चित किया है,
उसे पारित किया जाए.
इस प्रस्ताव पर 17 नवंबर 1949 से 25 नवंबर, 1949 तक बहस हुई. और फिर 26 नवंबर को संविधान सभा के अध्यक्ष के तौर पर राजेंद्र प्रसाद ने अपना आखिरी अध्यक्षीय भाषण दिया. भाषण खत्म होने के बाद राजेंद्र प्रसाद ने पूछा-
प्रश्न यह है कि इस सभा द्वारा निश्चित किए गए रूप में यह संविधान पारित किया जाए.'
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के इस सवाल पर ध्वनिमत से संविधान स्वीकृत किया गया. सदन में देर तक तालियां बजती रहीं...और फिर 26 जनवरी, 1950 को देश को अपना वो संविधान मिला, जिसके लिए हम गर्व से कहते हैं कि हमारा संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, जिसको बनाने में अंबेडकर का वो योगदान है, जिसकी वजह से उन्हें भारत के संविधान निर्माता की उपाधि मिली हुई है.
आलेख/फोटो सोर्स - इन्टरनेट |
आलेख दिनांक - 14-04-2023