आदिवासी शूरवीरों के इस कहानी के पृष्टभूमि की तैयारी समयचक्र ने तब तैयार करना प्रारंभ लिया था जब भारत देश पर अंग्रेजी शासन की हुकूमत का देहावसान हो रहा था, यानि सन 1947 में जब भारत देश आजाद हो गया था |
भारतवर्ष में संविधान लागू होने से पहले, आज़ादी से पहले राजतंत्र व्यवस्था प्रचलित हुआ करती थी और उस समय बस्तर रियासत में आदिवासियों के भगवान माने जानेवाले महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव जी शासक हुआ करते थे | बस्तर महाराजा ने अंग्रेजो एवं तत्कालीन सरकार के द्वारा बस्तर के आदिवासी समुदाय का शोषण का खुलकर मुकाबला किया साथ ही आदिवासियों की जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए ने सरकार की हर जनविरोधी नीतियों का डटकर सामना भी किया.
आज़ादी के बाद 1950 में जब भारत में संविधान लागू हुआ तब 20 जून सन 1953 को प्रवीर चंद्र भंजदेव की सारी संपत्ति कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधीन कर ली गई. अर्थात अब महाराजा की अपनी संपत्ति पर ही किसी तरह का कोई अधिकार नहीं रह गया था तब से लोहंडीगुडा गोली कांड की कहानी ने अपना स्वरुप कहें या अस्तित्व स्थापित करना चालू कर दिया.....
बस्तर रियासत छीन जाने से प्रवीर चंद्र भंजदेव जी के प्रति भी बस्तर के प्रशासनिक अधिकारियों का रवैया सम्मानजनक और सहानुभूतिपूर्ण नहीं था. समय था सन 1957 का जब देश में दूसरा आम चुनाव होना था. बस्तर लोक सभा सीट से महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव समर्थित तथा स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार मुचाकी कोसा की 1 लाख 77 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीत हुई थी. कांग्रेस उम्मीदवार सुरती क्रिस्टीया को मात्र 36 हजार वोट ही मिल पाए थे. तत्कालीन सरकार को इस बात का एहसास अच्छे से हो गया था कि महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव जी की मदद के बिना बस्तर में चुनाव जीत पाना संभव नहीं है क्योंकि बस्तर के आदिवासियों के लिए वे किसी देवपुरुष से कम नहीं थे. बस्तर के महाराजा के लिए भी बस्तर के भोले-भाले आदिवासी उनके अपने बच्चों की तरह थे, जिनके लिए वे सदैव चिंतित रहा करते थे.
महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की अपार लोकप्रियता को देखते हुए सरकार के लिए यह जरूरी हो गया कि महाराजा के साथ समझौता कर लिया जाये | सरकार ने महाराजा को संपत्ति वापस देने का वादा कर चुनाव लड़ने टिकिट दिया | सन 1957 के आम चुनाव में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव को जगदलपुर से तथा उनके अनुयायियों को अन्य जगहों से कांग्रेस के चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी से चुनाव लड़वाया गया. महाराजा की बस्तर में अपार लोकप्रियता के चलते महाराजा सहित उनके सारे अनुयायी भारी बहुमत से चुनाव में विजयी हुए लेकिन तत्कालीन सरकार ने महाराजा के साथ न्याय नहीं किया वरन उन्हें धोखा देते हुए उनकी संपत्ति उन्हें वापस करने के बजाय कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधीन ही रखी गई.
महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव आदिवासियों के शोषण के खिलाफ थे. वे बस्तर के जंगलों, पहाड़ों और खनिजों के दोहन के पूर्णतः खिलाफ थे. वे बस्तर के आदिवासियों के हर तरह की लूट के खिलाफ थे. इस सम्बन्ध में केंद्र की सरकार और बस्तर का प्रशासन न तो महाराजा की भावनाओं और विचारों को समझ पा रहे थे और न तो बस्तर के आदिवासियों की मूलभूत समस्याओं का समाधान कर पा रहे थे | तत्कालीन बस्तर की स्थितियां लगातार बिगड़ती चली गईं | महाराजा ने जवलंत बस्तर की समस्या के समाधान के लिए भोपाल गए और मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू से मिले. महाराजा ने सोचा कि मुख्यमंत्री बस्तर के आदिवासियों के दुख दर्द को समझेंगे और इसका कोई हल निकालेंगे लेकिन न्याय नहीं मिला उलटे खाली हाथ वापस बस्तर लौट गए | 11 फरवरी सन 1961 बस्तर वापसी के समय उन्हें धनपूंजी गांव में गिरफ्तार कर लिया गया और उनके अनुज विजय चंद्र भंजदेव को आनन फानन में बस्तर रियासत का महाराजा घोषित कर दिया . महाराजा की गिरफ्तारी के चलते बस्तर के आदिवासियों का शासन-प्रशासन के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा, गिरफ्तारी के विरोध में बस्तर में भीतर ही भीतर चिंगारी सुलगने लगी, कालांतर में यही चिंगारी लोहांडीगुड़ा में एक दिन ज्वालामुखी के रूप में फूट पड़ा | आज भी हमारे बस्तर के स्वर्णिम इतिहास में लोहांडीगुड़ा गोली कांड को एक कलंकित और काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है.
👉 महाराजा के गिरिफ्तारी के 40 दिनों बाद ही 24 और 25 मार्च सन 1961 को लोहांडीगुड़ा और आस-पास के गावों में आदिवासियों के भीतर का दबा हुआ आक्रोश फूट पड़ा. पहली बार 24 मार्च को प्रत्येक शुक्रवार के दिन लोहांडीगुड़ा में लगने वाले हाट में आदिवासियों ने बाजार टैक्स अदा करने से मना कर दिया तथा साथ ही गैर आदिवासी व्यापारियों के बाजार में दुकान लगाने का विरोध किया उस दिन सभी आदिवासियों के हाथों में लाठी और कुल्हाड़ी थी.महाराजा की गिरफ्तारी ने हमेशा शांत रहने वाले भोले-भाले आदिवासियों के हृदय में ज्वाला प्रज्वलित कर दी थी. उस दिन उन्होंने हाट में मौके पर उपस्थित तहसीलदार पर हमला करने की कोशिश भी की पर तहसीलदार किसी तरह अपने प्राण बचाकर भागने में सफल हो गए।
👉 देवड़ा और करंजी में लगने वाले साप्ताहिक बाजार में भी आदिवासियों ने इसी तरह का विरोध किया इस तरह की घटनाओं को देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने जगदलपुर से हथियारबंद जवानों को वहां भेजा. अनेक आदिवासी नेताओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया. लोहांडीगुड़ा, तोकापाल, सिरसागुडा सभी जगह महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव को तत्काल रिहा किए जाने की मांग जोर पकड़ती चली गई. साप्ताहिक हाट बाजारों में बाजार टैक्स वसूली तथा गैर आदिवासी व्यापारियों के बाजार में दुकान लगाने के खिलाफ नाराजगी बढ़ती चली गई. इसी के साथ महाराजा को रिहा करने की मांग भी जोर पकड़ती चली गई.
👉 सोमवार को तोकापाल में लगने वाले हाट बाजार में पुलिस को भीड़ को तितर बितर करने के लिए टियर गैस का सहारा लेना पड़ा. उस दिन आदिवासियों ने पुलिस बल पर पत्थर फेंके जिससे कुछ पुलिस वाले बुरी तरह से घायल हो गए. घटना स्थल पर उपस्थित पुलिस सुपरिटेंडेट आर. पी. मिश्रा पर भी आदिवासियों ने पत्थर फेंके, पर वे किसी तरह बच निकले. पुलिस ने इससे क्षुब्ध होकर कुछ आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया. आदिवासियों की भीड़ ने अपने नेताओं को छुड़ाने के लिए पुलिस वैन को घेर लिया. पिछले एक सप्ताह से बस्तर सुलग रहा था. लोहंडीगुड़ा, देवड़ा. करंजी तोकापाल, सिरसागुड़ा और आस-पास के माड़िया बहुल गांवों में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की गिरफ्तारी को लेकर आक्रोश अपनी चरम सीमा पर था. साप्ताहिक हाट बाजारों में बाजार टैक्स और गैर आदिवासी व्यापारियों को लेकर विरोध विस्फोटक स्थिति तक पहुंच चुका था. इन सारी स्थितियों को देखते हुए यह अनुमान लगाना सहज था कि इन आदिवासी गावों में कभी भी. कुछ भी दुर्घटना घटित हो सकती है. पर शासन-प्रशासन को जैसे इस सबसे कोई मतलब नहीं था.
👉 लोहंडीगुडा गोली कांड से ठीक एक दिन पहले यानी 30 मार्च 1961 को आदिवासी समुदाय ने रणनीति बनाने बड़ी आमसभा का आयोजन सिरिसगुड़ा और बड़ांजी गाँव में किया था जिसमें बस्तर के सभी विकासखंडों से आदिवासी समुदाय के अनेकों लोगों ने अपनी उपस्थिति दिया | सभा में यह तय किया गया की कल यानि 31 मार्च 1961 को लोहंडीगुड़ा थाना का घेराव करना है साथ ही अपने-अपने अनुसार तीर धनुष, भाला, टंगिया, फरसा और अन्य औजार लेकर लोहंडीगुडा पहुंचना है |
बस्तर के सोनू-मांझी से आप लोग अच्छे से परिचित होंगे, इन्ही सोनू-मांझी जैसे लोग इस आमसभा द्वारा तैयार रणनीति को प्रलोभन की आशा में बस्तर प्रशासन को उपलब्ध कराया |
रणनीति के अनुसार निर्धारित ग्राम बेलियापाल के बनवाड़ी में आदिवासी समुदाय एकत्रित होने लगे और देखते-देखते दस से पंद्रह हजार के करीब आदिवासियों हाथों में तीर-धनुष, फरसा, टंगिया, आदि हथियार लेकर जमा हो गए फिर यहाँ से सभा कर जुलूस के रूप में लोहंडीगुड़ा थाना की ओर रवाना हुए।
31 मार्च सन 1961, दिन शुक्रवार हमेशा की तरह लोहांडीगुड़ा का हाट बाजार का दिन अपने पूरे शबाब पर था | आस-पास के आदिवासी लोहांडीगुड़ा पहुंचने लगे थे पर आज का दिन आम दिनों में लगने वाले हाट बाजार से कुछ अलग ही था. आज भीड़ कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रही थी. आदिवासियों के चेहरे भी आज कुछ अलग दिखाई दे रहे थे. हमेशा शांत दिखने वाले भोले भाले आदिवादियों की आंखों में जैसे चिंगारियां फूट रही थी. देखते ही देखते 10 हजार आदिवासी लोहांडीगुड़ा बाजार में इकट्ठे हो गए थे. आदिवासी अपने-अपने हाथों में तीर-धनुष, टंगिया, अस्त्र-शस्त्र लिए हुए आज का दिन जैसे उनके लिए कयामत का दिन था. अपने देवता तुल्य महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव के लिए कुछ करने और शासन- प्रशासन से दो-दो हाथ करने की मंशा लिए एकत्र हो रहे थे किन्तु सोनू-मांझी के कुकृत्य का नतीजा यह हुआ कि प्रशासन ने लगभग हजारों सुरक्षा बल को गुप्त रूप से लोहंडीगुड़ा के छोटे जंगलों में तैनात किया गया था। आदिवासी समुदाय को इस बात का अंदेशा भी नहीं था कि प्रशासन उनको हटाने के लिए तैयारी कर रही है | नव घोषित पूर्व शासक विजय चंद्र भंजदेव के अधिकारियों व जिला प्रशासन के अधिकारियों ने भीड़ को समझा-बुझकर शांत कराने का प्रयास किया था लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकाल सके। देखते ही देखते भीड़ और बढ़ने लगी। हजारों सुरक्षा बल पुलिसकमियों ने उग्र भीड़ को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश किया किन्तु असफल रहे। समुदाय ने पुलिसकर्मियों व अधिकारियों को पीछे ढकेल दिया।
पुलिस अधिकारीयो ने माईक से समझाने की कोशिश की, भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू के गोले छोड़े गये लेकिन भीड़ हिंसक रूप धारण कर आगे बढ़ रही थी फिर जब पुलिस कर्मियों के द्वारा पीटा जाने लगा तब आदिवासियों ने भी तीर चलाना शुरू कर दिया, भीड़ ने थाना परिसर में तोड़-फोड़ कर दिये और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए व पुलिस कर्मियों ने अपने बचाव के लिये गोली चलना शुरू किया | पुलिस ने 40 से 45 राउंड फायरिंग भीड़ में चलाई गई। आदिवासी समुदाय के सैकड़ो आदिवासी शहादत हुये लेकिन इनमें से 12 व्यक्ति को ही पहचान सके जिनके नाम इस प्रकार से हैं :-
प्रशासन ने 31 मार्च को हुए गोली कांड में थाना क्षेत्र लोहंडीगुडा के 59 ग्रामीणों के खिलाफ मामला दर्ज कर सत्र न्यायालय जगदलपुर में पेश किया था जिनके नाम इस प्रकार से हैं :-
21 वर्षों तक इस प्रकरण में मुकदमा चला और जब बस्तर के लोहांडीगुडा गोलीकांड का फैसला आया तो सभी 59 ग्रामीण दोष मुक्त कर दिए गए. न्यायिक दंडाधिकारी जगदलपुर के आदेश क्रमांक 138/1962 के तहत 18 मई 1982 को नौ अधिवक्ताओं को अभियुक्तों के लिए नियुक्त किया गया था। 74 बिंदुओं पर आए फैसले में तत्कालीन अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बीबीएल सक्सेना ने खुली अदालत में यह निर्णय सुनाया था कि अभियुक्तों के विरुद्ध लगाए गए आरोपों को अभियोजन सिद्ध करने में नितांत असफल रहा है इसलिए आदेशित किया जाता है कि अभियोजित भारतीय दंड विधान की धारा 147 अपठित धारा 148 भादवि के अपराध से सभी अभियुक्तों को विमुक्त कर दिया जाए। जो अभियुक्त जमानत पर हैं, उनका जमानती बांड एतद् द्वारा निरस्त कर दिया जाता है।
प्रतिवर्ष की भांति आज 31 मार्च 2023 को लोहंडीगुडा गोलीकांड की 61वीं शहादत दिवस पर विकासखंड लोहंडीगुडा के ग्राम उसरीबेड़ा में स्थापित शहीद स्मारक/स्मृति स्तंभ पर बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय अपने अधिकारों और जल, जंगल, जमीन के संरक्षण और वीर शहीदों के याद में शहीद दिवस के रूप में बना रहा है | इस दिवस पर 12 लोग शहीद हुए, 59 लोग 21 वर्ष बाद दोषमुक्त हुए, गोली चलाने वालों को भी प्रकृति निगल गयी, किन्तु आज पर्यंत आदिवासी समाज के इन शूरवीरों को, ना ही इनके परिवारों को न तो कोई सम्मान दिला पाया ना ही प्रशासन ने कोई मुआवज़ा दिलाया |
आलेख दिनांक - 31 मार्च 2023, स्थान - बास्तानार